योगी का 80 सीटों वाला खुला चैलेंज!: क्या है वह गणित जिसके आधार पर इतनी बड़ी बात बोल गए मुख्यमंत्री, ऐसे बनेगी रणनीति

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उत्तर प्रदेश में के रामपुर और आजमगढ़ में हुए लोकसभा उपचुनावों में भाजपा को दोनों सीटों पर मिली जीत के बाद भाजपा ने नई रणनीति बनानी शुरू कर दी है। इसी रणनीति के तहत ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में यूपी की सभी 80 सीटों को जीतने का दावा किया है। योगी आदित्यनाथ ने यह दावा तब किया है, जब उत्तर प्रदेश में हुए लोकसभा के उपचुनाव की दोनों सीटें भाजपा की झोली में आ गई हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि योगी आदित्यनाथ का यह बयान भाजपा की न सिर्फ रणनीति को बताता है, बल्कि मनोवैज्ञानिक तौर पर विपक्षियों को कमजोर करने जैसा भी है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को आए लोकसभा के चुनावों के बाद आगामी लोकसभा चुनावों में 80 की 80 सीटों को जीतने का दावा कर दिया। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जब विपक्ष के हाथ से उसकी परंपरागत सीटें निकल जाएं तो इस तरीके के बयान राजनैतिक तौर पर बहुत मायने रखते हैं। राजनीतिक विश्लेषक ओपी मिश्रा का कहना है कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के जो परिणाम उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए आए हैं, वह विपक्ष को बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर करते हैं। मिश्रा कहते हैं कि उप चुनावों की बहुत ज्यादा अहमियत तो नहीं होती है, लेकिन ऐसे चुनावों के परिणाम तब ज्यादा अहम हो जाते हैं जब अगले कुछ समय में बड़े चुनाव होने वाले हों। क्योंकि 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं इसलिए 2022 के विधानसभा चुनाव के परिणाम और उसके तुरंत बाद हुए लोकसभा के उपचुनाव के परिणामों से जनता का सीधा कनेक्ट बनता है। वह कहते हैं कि इस लिहाज से भाजपा ने रणनीति के आधार पर बढ़त तो फिलहाल बना ही ली है।

 

विकास के लिए भाजपा को चुनती है जनता

आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर भाजपा के रणनीतिकारों ने जो योजना बनाई है, उसमें फील्डिंग भी कुछ इसी तरीके से सजाई गई है। भाजपा केंद्रीय नेतृत्व से जुड़े वरिष्ठ नेता कहते हैं कि उनकी पार्टी चुनावी मोड में नहीं रहती है बल्कि जनता के विकास के लिए वह हर समय अपनी योजनाएं बनाकर उसको अमल में लाती रहती है। यही वजह है कि जहां कहीं भी चुनाव होते हैं तो विकास के मुद्दे पर जनता सिर्फ भाजपा को ही चुनती है। हालांकि भाजपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय नेतृत्व ने लोकसभा के चुनावों को ध्यान में रखते हुए न सिर्फ अंदरूनी सर्वे कराना शुरू कर दिया है, बल्कि अलग-अलग राज्यों में नेताओं को जिम्मेदारियां भी दी जानी शुरू कर दी हैं। जानकारी के मुताबिक जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं, वहां पर मंत्रियों से लेकर जिला अध्यक्षों और विधायकों से लेकर अन्य जिम्मेदार पदाधिकारियों को जिलेवार और ब्लॉक स्तर तक पर जनता से संवाद कायम करने की जिम्मेदारी दी गई है, जिसकी साप्ताहिक रिपोर्ट अब जिला अध्यक्ष और विधायक के माध्यम से प्रदेश अध्यक्ष और संगठन मंत्री तक पहुंचाई जा रही है।

दरअसल उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनावों की जो भूमिका अभी से तैयार हो रही है, उसमें तमाम तरीके के जातिगत समीकरणों के साथ विकास के मॉडल का बूस्टर डोज दिया जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक हेमेंद्र चतुर्वेदी कहते हैं कि जिस तरीके से सपा, बसपा और कांग्रेस के अपने कोर वोट बैंक में सेंधमारी हो रही है, उससे भाजपा हर चुनाव में मजबूत होती दिख रही है। चतुर्वेदी का कहना है कि उत्तर प्रदेश में हुए लोकसभा के उपचुनावों में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की करारी हार के राजनीतिक मायने कुछ इसी तरीके से निकाले जा रहे हैं। उनका कहना है कि समाजवादी पार्टी के कोर वोट बैंक मुस्लिम और यादवों में जमकर सेंधमारी हो रही है। वही बहुजन समाज पार्टी के अपने दलित वोट बैंक में भी भाजपा ने सेंधमारी कर दी है। चतुर्वेदी के मुताबिक असली लड़ाई अब समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के मुस्लिम और बैंकों को लेकर के मची हुई है।

आजमगढ़ हारी बसपा, फिर क्यों है उत्साहित?

उनके मुताबिक आजमगढ़ के परिणाम भले ही बसपा के मुताबिक न आए हों, लेकिन पार्टी उससे बहुत उत्साहित है। उसकी सबसे बड़ी वजह यही है कि मुस्लिमों का बड़ा वोट बैंक बहुजन समाज पार्टी की ओर बढ़ा है। हालांकि चतुर्वेदी का कहना है कि बहुजन समाज पार्टी को भी इस दिशा में बहुत काम करने की जरूरत है। क्योंकि आजमगढ़ में जो वोट बैंक मायावती अपना मान कर चल रही है दरअसल व्यक्तिगत तौर पर वहां के स्थानीय प्रत्याशी गुड्डू जमाली का है। चतुर्वेदी का कहना है कि अगर मायावती वास्तव में मुस्लिमों को अपने साथ जोड़ना चाहती हैं, तो उनको जमीनी स्तर पर काम करना होगा क्योंकि मुस्लिमों को विधानसभा के चुनावों में टिकट देने के बाद भी उनको वह परिणाम हासिल नहीं हुए थे।

हालांकि मायावती ने मुसलमानों का नाम लिए बगैर उनसे आगामी लोकसभा चुनावों में गुमराह न होने की अपील भी की है और बसपा से जुड़ने को कहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि समाजवादी पार्टी अभी भी तमाम तरह के अंदरूनी विवादों से उबर नहीं पाई है। इसलिए सपा को जमीन पर राजनीतिक लड़ाई से ज्यादा अपने अंदरूनी तीनों कांटे दुरुस्त करने की जरूरत लग रही है। वे कहते हैं यही वजह है कि भाजपा 2024 के लोकसभा चुनावों में अपनी मजबूत दावेदारी के साथ सभी 80 सीटों पर चुनाव जीतने की बात कर रही है।

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