Getting your Trinity Audio player ready...
|
छठ पूजा के सम्बन्ध में जानकारी-आज से शुरू होगा पर्व
अयोध्या (डीकेयू लाइव ब्यूरो) सुरेंद्र कुमार।लोक आस्था का महापर्व छठ शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया है ।
18 नवंबर को खरना,
19 नवंबर को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य और 20 को उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ चार दिनों के पर्व का समापन होगा।
सरयू के घाटों के अलावा गोसाईगंज के तमसा तट पर छठ पर्व की तैयारियां लगभग पूरी हो गई हैं।
घाटों पर वेदियां सजकर तैयार हैं। पर्व का पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी नहाय खाय के रूप में मनाया जाता है।
भोजन के रूप में कद्दू, चने की दाल और चावल ग्रहण किया जाता है।
घर के सभी सदस्य व्रती के भोजन करने के बाद ही भोज ग्रहण करते हैं।
इसके अगले दिन खरना मनाया जाता है।
इस दिन व्रती महिलाएं गुड़ की खीर का प्रसाद बनाती हैं। कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रती महिलाएं दिन भर उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करती हैं। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस की बनी चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है।
तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। इसे ठेकुआ या टिकरी भी कहते हैं।
शाम को पूरी तैयारी कर बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है। व्रती महिलाएं अस्ताचलगामी सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य देती हैं।
चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी को सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
*छठ को लेकर बढ़ी बाजारों में रौनक*
छठ पूजा की खरीदारी के लिए गुरुवार को बाजारों में रौनक रही।
महिलाओं ने कोसी, पीतल का सूप, बांस का सूप, दहरा, डगरा, गन्ना, नारियल सहित पूजा के अन्य सामानों की खरीदारी की।
कपड़े की दुकानों पर साड़ियों की खरीदारी भी खूब हुई। श्रृंगार की दुकानों पर भी महिलाओं की भीड़ रही।
*प्रकृति संरक्षण का संदेश देते हैं छठ के लोकगीत*
साहित्यकार डॉ़ हरिप्रसाद दुबे बताते हैं कि छठ पर्व में गीत ही मंत्र हैं। इन गीतों में परिवार और संतान के साथ सूर्य, पृथ्वी और पर्यावरण संरक्षण की बात भी पीढ़ियों से चली आ रही है। सुबह के अर्घ्य से पहले गाए जाने वाले गीत कहवां बिलंबला हो सुरुज देव.. में सूर्यदेव के उगने में होने वाली देर के चलते हवा के मंद पड़ने, जीव और पक्षियों की व्याकुलता, नदी और व्रती महिलाओं के इंतजार के भाव मुखरित होते हैं।
केरवा के पांत पर उग हो सुरुज देव… जैसे गीत में केले के पत्ते पर सूर्यदेव से उगने की प्रार्थना की जा रही है।
उगी ना आदित मल अरघ दियाउ.. गीत में प्रार्थना की जाती है कि सूर्यदेव जल्दी प्रकट हों ताकि प्रकृति फिर से हरी-भरी हो सके।
*बांस और दूब से वंश की तुलना*
डॉ़ हरिप्रसाद के अनुसार, बांस व दूब की तुलना वंश से की गई है।
कांचहि बांस कै दउरवा, दउरा नइ-नइ जाय… गीत में कच्चे बांस की दौरी का जिक्र है जो बोझ से लचक रही है मगर टूटने को तैयार नहीं है। रीतियों में संतान को भी इसी तरह फलने-फूलने और दृढ़ रहने का आशीर्वाद दिया जाता है।
*अर्घ्य का मुहूर्त*
19 नवंबर – शाम 5:22 बजे अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।
20 नवंबर- सुबह 6:39 बजे उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।