डॉ. आरएमएलआईएमएस ने राष्ट्रीय आधिकारिक लिवर विफलता प्रबंधन दिशा निर्देशों के निर्माण में दिया योगदान

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डॉ. आरएमएलआईएमएस ने राष्ट्रीय आधिकारिक लिवर विफलता प्रबंधन दिशा निर्देशों के निर्माण में दिया योगदान

ब्यूरो चीफ आर एल पांडेय

लखनऊ। प्रो0 (डॉ.) सी.एम. सिंह, निदेशक, ने, बच्चों और किशोरों में लिवर विफलता के निदान और प्रबंधन के लिए इंडियन सोसाइटी ऑफ पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, हेपेटोलॉजी और न्यूट्रिशन (ISPGHAN) प्रथम आधिकारिक राष्ट्रीय दिशा निर्देशों के निर्माण में योगदान देने के लिए संस्थान के बाल्य हेपेटोलॉजिस्ट और गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट विभाग के डॉ. पीयूष उपाध्याय, को बधाई दी। यह दिशानिर्देश देश की प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका “हेपेटोलॉजी इन्टरनेशनलआफ एशिया पैसिफिक सोसाइटी फॉर स्टडी ऑफ लिवर डिजीज (एपीएएसएल) में प्रकाशित हुये हैं। डॉ. पीयूष उपाध्याय दुनिया भर के उन 50 विशेषज्ञों में से हैं जिन्होंने एक साथ मिलकर समाज के हित के लिए दिशानिर्देश विकसित किए।
प्रो0 (डॉ.) सी.एम. सिंह, निदेशक, ने बताया कि देश भर में लिवर विफलता के प्रबंधन को मानकीकृत करने के लिए ऐसे दिशानिर्देश आज के समय की आवश्यकता हैं, । इन दिशा निर्देशों के अनुपालन से लिवर विफलता से होने वाली मृत्यु दर और रोग की दर में कमी आएगी । वहीं दूसरी तरफ इससे देश का वित्तीय बोझ भी कम होगा। यह दिशानिर्देश मरीजों की देखभाल के स्तर पर इस जानलेवा बीमारी से निपटने में देश की मदद करेंगे।
डॉ. पीयूष उपाध्याय ने बताया कि बच्चों और किशोरों में लिवर की विफलता कई कारणों से होती है, लेकिन उनमें से सबसे आम हेपेटाइटिस ए है जो लगभग 40 से 50 प्रतिशत तक होती है। लिवर विफलता के अन्य कारण है हेपेटाइटिस ई, हेपेटाइटिस बी, ऑटो इम्यून लिवर रोग और विल्सन रोग आदि ।

लिवर की विफलता के लक्षण एक आम आदमी के लिए भी पहचानना आसान है। जैसे यदि पीलिया या लीवर की क्षति से पीड़ित कोई बच्चा, किशोर या वयस्क सामान्य से अधिक या कम सोता है, सुस्त है, चिड़चिड़ापन है, उसे नींद से जगाना मुश्किल है, शरीर में अकड़न है, बेहोशी है तो इसका मतलब है कि पीलिया लीवर की विफलता की ओर बढ़ रहा है और तत्काल उसे चिकित्सीय देखभाल की आवश्यकता है।
डॉ. आरएमएलआईएमएस, लखनऊ के डॉ. पीयूष उपाध्याय के अलावा, अन्य वरिष्ठ गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट और हेपेटोलॉजिस्ट जिन्होंने इन दिशानिर्देशों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है उनमें आईएलबीएस, नई दिल्ली से प्रो. शिव कुमार सरीन, प्रो. सीमा आलम, डॉ. बिक्रांत बिहारी लाल, डॉ. राजीव खन्ना, डॉ. विक्रांत सूद शामिल हैं। चेन्नई से डॉ. मो0 रिले, किंग्स कॉलेज, लंदन से डॉ. अनिल धवन, टेक्सास, अमेरिका से डॉ. मुरेश्वर देसाई, यूनाइटेड किंगडम से डॉ. आकाश दीप,डॉ. मैरिएन, एस0जी0पी0जी0आई0एम0एस, लखनऊ से डॉ. अंशू श्रीवास्तव और डॉ. मोइनक एस शर्मा और अन्य थे।

तीव्र यकृत विफलता (Acute Liver Failure ) क्या है?
तीव्र यकृत विफलता (INR >1.5 और मानसिक भ्रम (एनसेफैलोपैथी) के लक्षण या INR > 2) तब होती है जब यकृत की कई कोशिकाएँ मर जाती हैं या थोड़े समय में बहुत क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। इससे यकृत ठीक से काम नहीं कर पाता।
लीवर शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालता है, रक्त शर्करा के स्तर को बनाए रखने में मदद करता है, प्रतिरक्षा प्रणाली का एक हिस्सा है और रक्त के थक्के को नियंत्रित करता है। जब लीवर काम करना बंद कर देता है तो यह एक आपातकालीन स्थिति होती है और इसका तुरंत इलाज किया जाना चाहिए।

लीवर फेलियर के लक्षण
पीलिया
आसानी से खून बहना
पेट में सूजन
मानसिक भटकाव या भ्रम (यकृत एन्सेफैलोपैथी के रूप में जाना जाता है)
तंद्रा/हल्की नींद
थकान
चिड़चिड़ापन
कोमा

लीवर फेलियर होने का कारण
वायरल हेपेटाइटिस
हेपेटाइटिस ए (40-50% मामले)
हेपेटाइटिस ई
हेपेटिस बी
ऑटो इम्यून लिवर रोग
विल्सन रोग
पेरासिटामोल सहित दवाओं का ओवरडोज़
जहर
फैटी लीवर में वायरल संक्रमण
चयापचय यकृत रोग

तीव्र यकृत विफलता का उपचार
तीव्र यकृत विफलता का उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि बीमारी किस कारण से हुई। कुछ कारणों का इलाज दवा या यकृत प्रत्यारोपण द्वारा किया जा सकता है।

सहायक देखभाल – कुछ मरीज़ ऐसे होते हैं जो अपने लक्षणों के लिए उपचार मिलने पर अपने आप ठीक हो जाते हैं। कई मरीज़ जिनकी स्थिति वायरस के कारण होती है, वे अपने आप ठीक हो जाते हैं। उनका लीवर खुद को एक स्वस्थ अंग में बदलने में सक्षम होता है।
दवा – जब तीव्र यकृत विफलता हृदय संबंधी स्थिति, प्रतिरक्षा प्रणाली या एसिटामिनोफेन के कारण होती है, तो कभी-कभी इसका इलाज दवा से किया जा सकता है। यदि समय रहते दवा दी जाए तो यह इसे उलटने में सक्षम हो सकती है। यदि अभी तक कोई ऐसा नुकसान नहीं हुआ है जिसे उलटा नहीं किया जा सकता है, तो चयापचय संबंधी बीमारियों का इलाज दवा या आहार से किया जा सकता है।
प्रत्यारोपण – तीव्र यकृत विफलता वाले लगभग 40 प्रतिशत बच्चों को जीवित रहने के लिए यकृत प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है।

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