मिलता है जहां का प्यार उन्हें ,औरों के जो आंसू पीता है

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मिलता है जहां का प्यार उन्हें ,औरों के जो आंसू पीता है

ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय

लखनऊ। विनोबा विचार प्रवाह के सूत्रधार रमेश भइया ने बताया कि निर्मला दीदी ने दुनिया भर को प्यार बांटा, तभी वे दुनिया भर की दीदी मानी जाती थीं।आज उनका 96 वां जन्म दिन। निर्मला देशपांडे एक ऐसा नाम जिन्हें भारत और पाकिस्‍तान दोनों देशों ने अपने राष्‍ट्रीय सम्‍मान से नवाजा था। निर्मला देशपांडे गांधी_ विनोबा के आदर्शों पर चलने वाली सामाजिक कार्यकर्ता थीं, जिनका पूरा जीवन सांप्रदायिक सौहार्द्र के निर्माण हेतु समर्पित रहा था।. अंग्रेजी हुकूमत से लड़ने और आजादी हासिल करने के बाद भी भारत को अभी एक लंबी लड़ाई लड़नी बाकी थी. फिरंगी तो चले गए, लेकिन भारतीय समाज अब भी अपनी जड़ों तक रूढि़वादिता, जाति व्‍यवस्‍था, गरीबी, भुखमरी और अशिक्षा के संकट से जूझ रहा था और इस संकट से निजात पाने की लड़ाई अभी और लंबी थी. आजाद भारत में ऐसे बहुत सारे बुद्धिजीवी, चिंतक और एक्टिविस्‍ट थे, जो एक आजाद देश को न्‍याय, समता और बराबरी का देश बनाने के लिए सतत संघर्ष कर रहे थे. इन लोगों में एक नाम विनोबा जी के कार्यों को आगे।बढ़ाने में जुटी दीदी निर्मला देशपांडे का था।. आज निर्मला दीदी का 96 वां जन्‍मदिन संपूर्ण भारत देश और अनेक राष्ट्र मना रहे है। निर्मला देशपांडे गांधी विनोबा के आदर्शों पर चलने वाली एक कार्यकर्ता थीं।उन्‍होंने अपना पूरा जीवन सांप्रदायिक सौहार्द्र और स्त्रियों की शिक्षा और सशक्तिकरण के काम में समर्पित कर दिया था। वो संभवत: एकमात्र ऐसी सोशल एक्टिविस्‍ट थीं जो भारत और पाकिस्‍तान के बीच शांति और सौहार्द्र बनाने में ऐतिहासिक भूमिका निर्वाह करती रही है।. 95 साल पहले आज ही के दिन नागपुर महाराष्ट्र में उनका जन्‍म हुआ था. उनके पिता पुरुषोत्‍तम यशवंत देशपांडे मराठी के नामी गिरामी लेखक थे, जिन्‍हें 1962 में उनकी किताब अनामिकाची चिंतनिका के लिए साहित्‍य अकादमी अवॉर्ड से सम्‍मानित किया गया था। उनके घर में शुरू से ही साहित्‍य के साथ-साथ राजनीतिक चिंतन का माहौल था। पिता मराठी के नामी लेखक थे. मां का भी साहित्‍य के प्रति गहरा झुकाव था. निर्मला की माता विमला ताई देशपांडे ने प्रसिद्ध दार्शनिक जे. कृष्‍णमूर्ति की किताब “Commentaries on Life” का मराठी में अनुवाद किया था। निर्मला दीदी ने नागपुर यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में एम ए किया था।. उन्‍होंने पुणे के प्रसिद्ध र्फर्ग्‍यूसन कॉलेज से भी पढ़ाई की. पढ़ाई पूरी करने के बाद वह नागपुर के मॉरिस कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस पढ़ाने लगीं।. अपने पिता की तरह निर्मला जी का भी लेखन के प्रति झुकाव था और उन्‍होंने अपने जीवन काल में कई महत्‍वपूर्ण कृतियों की रचना की । उन्‍होंने हिंदी में कई उपन्‍यास लिखे. उनका सबसे चर्चित उपन्‍यास है- “सीमांत.” सीमांत के कथानक के केंद्र में एक स्‍त्री है. पूरा उपन्‍यास उस स्‍त्री के सामंती पितृसत्‍ता की बेडि़यों को तोड़कर आजाद होने और अपने सत्‍व को ढूंढने और पाने की कहानी है. उनका एक और हिंदी उपन्‍यास चिंगलिंग चीन की सांस्‍कृतिक कथा है।. इस उपन्‍यास को राष्‍ट्रीय सम्‍मान से नवाजा गया है. इसके अलावा निर्मला दीदी ने कुछ नाटक और यात्रा वृत्‍तांत भूदान गंगा आदि भी लिखे हैं. निर्मला देशपांडे जी ने विनोबा भावे की जीवनी भी लिखी है। निर्मला दीदी ने एक पत्रिका का भी संपादन किया था. ‘नित्‍य नूतन’ नामक इस पत्रिका का संपादन शुरू हुआ 1985 से, जो सांप्रदायिक सौहार्द्र, शांति और अहिंसा के विचारों को समर्पित थी. ‘नित्‍य नूतन’ अपने समय की बहुत प्रभावशाली पत्रिकाओं में से एक थी. जिसका संपादकीय पढ़ने के लिए लोग प्रतीक्षा किया करते थे। सन 1952 भूदान यात्रा का साल था, जब पहली बार विनोबा भावे जी से काशी के पड़ाव पर निर्मला देशपांडे की मुलाकात हुई। वह बाबा विनोबा के व्‍यक्तित्‍व और काम से इतनी प्रभावित हुईं कि सबकुछ छोड़-छाड़कर उनके भूदान आंदोलन का हिस्‍सा बन गईं। उन्‍होंने विनोबा भावे के साथ 40 हजार किलोमीटर की पदयात्रा की और देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में गईं. इस यात्रा का मकसद भूमिवानों से भूमिहीनों के लिए दान का महत्व समझाकर प्रेम से जमीन का।दान करना था। जिस देश में महाभारत जैसा युद्ध सुई की नोंक भर जमीन न देने के फलस्वरूप हो चुका था । वहां पर विनोबा जी के भूदान आंदोलन के माध्यम से 45 लाख एकड़ जमीन मांगने से प्राप्त हुई थी।निर्मला दीदी ने गांधी के संदेश “ग्राम स्‍वराज” को जन-जन तक पहुंचाने के लिए भी कई यात्राएं की। आजादी के बाद जिस तरह देश की राजनीति और अर्थव्‍यवस्‍था बदल रही थी, निर्मला जी खुद भी जानती थीं कि बहुसंख्‍यक लोग गांधी के विचारों और आदर्शों से दूर हो रहे थे. गांधी के बताए ग्राम स्‍वराज के रास्‍ते पर चलना आसान नहीं था. लेकिन फिर भी यह उनका गहरा यकीन था कि इसके अलावा कोई दूसरा विकल्‍प भी नहीं है. उन्‍हें यकीन था कि भारत को एक मजबूत लोकतंत्र बनाने के लिए गांवों को सबल और आत्‍मनिर्भर बनाना जरूरी है. राजधानी और महानगर पूरा देश नहीं हैं. असली देश गांवों में बसता है. एक सबल और सशक्‍त लोकतंत्र वही हो सकता है, जहां गांव आत्‍मनिर्भर और समृद्ध हों। जब कश्‍मीर और पंजाब जैसे राज्‍यों में हिंसा चरम पर थी, तो वहां शांति यात्रा निकालने का साहस भी निर्मला दीदी ने ही दिखाया था। 1994 में उन्‍होंने कश्‍मीर में शांति मिशन की शुरुआत की. 1996 में भारत-पाकिस्‍तान के बीच शांति वार्ता करवाने में भी निर्मला देशपांडे और उनके संगठन अखिल भारत रचनात्मक समाज की बड़ी भूमिका थी। 1 मई, 2008 को जब उनकी मृत्‍यु हुई तो वह राज्‍यसभा की सदस्‍य भी थीं। 79 साल की उम्र में वह दुनिया से रुखसत हो गईं। . उन्‍होंने भारत और पाकिस्‍तान के बीच शांति के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था। . साल 2005 में उन्‍हें राजीव गांधी राष्‍ट्रीय सद्भावना अवॉर्ड से सम्‍मानित किया गया. 2006 में उन्‍हें पद्म विभूषण मिला। निर्मला दीदी को मरणोपरांत 13 अगस्‍त, 2009 को पाकिस्‍तान के स्‍वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्‍या पर उन्‍हें उस देश के तीसरे सबसे प्रतिष्ठित सिविलियन अवॉर्ड सितार-ए-इम्तियाज से सम्‍मानित किया गया था। दुनिया के तमाम।देशों में स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वाले कार्यकर्ताओं का उत्साह वर्धन का कार्य वे करती रहीं थीं। भारत देश में ग्राम स्वराज्य का संदेश फैलाने के लिए दीदी की प्रेरणा से राष्ट्रीय ग्राम स्वराज्य संदेश पदयात्रा धर्मशाला हिमाचल प्रदेश से परमपावन दलाईलामा जी के आशीर्वाद से शुरू कर प्रथम भूदान प्राप्ति स्थली पोचमपल्ली में 2001 में विराम ली थी। यह पदयात्रा 35000 किलोमीटर के आसपास हुईं थी। दीदी के बाद भी ग्रामस्वराज्य का कार्य समाज में बढ़े इसके लिए भी प्रयास समाज में हो रहे हैं। गांधी विनोबा के कार्यों को गति देने का कार्य दीदी जिस भावना से करती थीं उसी भाव से दीदी समाज में रचनात्मक आंदोलन खड़ा करने के लिए स्वयंसेवी संस्थाओं को भी बढ़ावा देती थीं। वह स्वयं अनेक संस्थाओं की अध्यक्ष थीं।जिसमें गांधी जी द्वारा 1932 में स्थापित संस्था हरिजन सेवक संघ, अखिल भारत रचनात्मक समाज, हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल अमरावती, रॉयल सेवा समिति तिरुपति, और महाराष्ट्र के आदिवासी क्षेत्र में शिक्षा का काम करनेवाली संस्था ग्राम विकास संस्थान आदि थीं। दीदी का स्नेह देश के ग्रामीण क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं को भी प्राप्त था।

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