आयुर्वेद चिकित्सा में पंचकर्म का विशेष योगदान:आयुर्वेद की जादू की पोटली

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आयुर्वेद चिकित्सा में पंचकर्म का विशेष योगदान:आयुर्वेद की जादू की पोटली
ब्यूरो चीफ आर एल पांडे
लखनऊ ,आयुर्वेद चिकित्सा में पंचकर्म का विशेष योगदान है पंचकर्म उपचार विषाक्त पदार्थों को खत्म करने, दोषों को संतुलित करने और प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने के लिए व्यक्तिगत शारीरिक तकनीक और अनुकूलित आहार का उपयोग करता है। इस प्रक्रिया में पाँच उपचार, वमन , विरेचन , बस्ती , नस्य और रक्तमोक्षण प्रभावी हैं
आयुष से पहचान की अगली कड़ी में आज आपकोबात करते है।.……. पोटली स्वेदन…..
जिसके द्वारा शरीर के विभिन्न स्रोतसों में एकत्रित विषाक्त पदार्थ अलग-अलग प्रक्रियाओं द्वारा शरीर से निष्कासित किए जाते हैं। इस चिकित्सा पद्धति में एक पोटली में रेत अथवा पाउडर,जड़ी-बूटियां भरतर सिंकाई की जाती हैं। जिससे आप दर्द, सूजन और बढते वजन को कम कर सकते हैं।
पोटली स्वेदन/मसाज आयुर्वेद की एक सदियों पुरानी तकनीक है। इसमें, गर्म हर्बल थैलियों यानी पोटली का इस्तेमाल करके शरीर के प्रभावित हिस्से को आराम और पोषण दिया जाता है।यह चिकित्सा, शरीर को डिटॉक्सीफ़ाई करती है, पसीना निकालती है, और रक्त परिसंचरण में सुधार करती है। पोटली स्वेदन से दर्द में आराम मिलता है और मांसपेशियां और त्वचा मज़बूत होती है।यह रुमेटी गठिया, ऑस्टियोआर्थराइटिस, और स्पोंडिलाइटिस जैसी स्थितियों में फ़ायदेमंद है।क्या आप रात में हड्डियों और जोड़ों के दर्द के कारण बिस्तर पर करवटें बदलते-बदलते थक गए हैं? यह गंभीर और दीर्घकालिक पीठ दर्द, जोड़ों में दर्द, मांसपेशियों में जकड़न, अकड़न आदि के कारण हो सकता है। तो लिए आपको आयुर्वेद की एक विशेष चिकित्सा पद्धति से परिचित कराते हैं जिससे आपको इन सभी बीमारियों से राहत मिलेगी।

पोटली स्वेदन/मसाज ,इस मालिश के लिए, औषधीयुक्त वातहर के पत्तों से बनी कतरन का इस्तेमाल किया जाता है। और कपड़े की पोटली में इन सबको भरकर किसी विशेष तेल मुख्य तहत तेल या अश्वगंधा के तेल से मालिश की जातीहै।
पत्र पिंड स्वेद ,पीठ के निचले हिस्से में दर्द, साइटिका, गठिया और फ्रोजन शोल्डर के लिए आयुर्वेदिक पोटली मसाज है। औषधीय से भरी इस पोटली से आयुर्वेदिक पोटली मसाज की जाती हैं।
बीमारियों के अनुसार इस पोटली में औषधि और सामग्री बदलती रहती है जैसे टेंशन और अनिद्रा की स्थिति में मसाज पोटली में रेत के साथ अश्वगंधा भरते हैं। शरीर में दर्द होने पर रेत के साथ नीम का तेल या फिर सरसों का तेल भरा जाता है।
स्किन और मानसिक समस्याओं की परेशानी कम करने के लिए हल्दी और अदरक का इस्तेमाल होता है।
सिरदर्द होने पर मिंट और नींबू का प्रयोग होता है।
मसल्स में होने वाला दर्द और शरीर में ब्लड सर्कुलेशन सुधारने के लिए चावल और रोजमेरी का इस्तेमाल किया जाता है।
आयुर्वेद में आपके अत्याधिक दर्द, जकड़न और मांसपेशियों में अकड़न के लिए एक अद्वितीय उपचार है,औषधीय पौधों एरंड,धतूरा – धतूरा मेटेल, निर्गुंडी, भांग, अश्वगंधा,की पत्तियों को एक पोटली में बांधा जाता है और दर्द से पीड़ित जोड़ों पर एक समकालिक तरीके से रगड़ा जाता है। धतूरे में सूजन-रोधी क्रिया होती है और यह गठिया और गठिया को कम करता है। शिग्रु और निर्गुंडी गंभीर दर्द को कम करती है और एरंडा वात दोष को शांत करती है।
पत्र पिंड स्वेद मस्कुलोस्केलेटल और न्यूरो-मस्कुलर विकारों दोनों में अत्यधिक कारगर है। इस थेरेपी को जब अन्य स्थानीय उपचारों जैसे कि कटि बस्ती (पीठ के निचले हिस्से के लिए तेल पूलिंग) ग्रीवा बस्ती (गर्दन के पीछे तेल पूलिंग) जानू बस्ती (घुटने के जोड़ों में तेल पूलिंग) पृष्ठ बस्ती (पूरी पीठ के लिए तेल पूलिंग) अभ्यंग (सिर से पैर तक पूरे शरीर पर तेल मालिश) के साथ कुशलतापूर्वक लिया जाता है तो जादुई परिणाम मिलते हैं। पर ध्यान रखें यह सब एक कुशल चिकित्सक के नेतृत्व में करना ही सही रहता है वरना परिणाम उल्टे भी आ सकतेहैं।
भारतीय आयुर्वेद में मुख्य रूप से तीन प्रकार के शरीर होते हैं- वात, पित्त और कफ। शरीर में यदि वात पित्त और कफ के संतुलन में कमी या इजाफा होता है तो कई प्रकार के दोष उत्पन्न हो जाते हैं और इन्हीं दोषों को मानव शरीर और मन में पाई जाने वाली जैविक ऊर्जा के रूप में वर्णित किया गया है। तीनों मिलकर शारीरिक और मानसिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं और प्रत्येक जीवित प्राणी को एक व्यक्तिगत खाका प्रदान करते हैं। आज के वैज्ञानिक वैश्वीकरण और भागम भाग भरी जिंदगी में प्रदूषण बहुत ज्यादा बढ़ गया है ऐसे में शरीर और मां का संतुलन बहुत आवश्यक है और सबसे ज्यादा जरूरी है कि हम अपने बायोलॉजिकल क्लॉक को नियंत्रित रखें। वात पित्त और कफ का संतुलन ही शरीर को बेहतर ढंग से कार्य करने में सक्षम बनाता है ताकि हम स्वस्थ जीवन जी सकें। एक स्वस्थ शरीर अपने आप ही स्वस्थ विचार रहते है, इस प्रकार आयुर्वेद शरीर और आत्मा दोनों को सकारात्मकता से भर देता है।
पोटली चिकित्सा के बाद विशेष सावधानी रखनी चाहिए मालिश के बाद बचे हुए तेल को धोने के लिए गर्म स्नान या शॉवर की सलाह दी जाती है। दही मट्ठा,खट्टा तथा ठंडा से बचाव करना पड़ता है। कहीं-कहीं बॉडी स्टीमर की उपलब्धता से स्टीम भी ली जाती है।
और आप जानकर आश्चर्यचकित होंगे कि यह सब लखनऊ के 50 शैय्या आयुष चिकित्सा अस्पताल कल्ली पश्चिम में विभिन्न रोगों के इलाज हेतु प्रयुक्त की जातीहै। एलोपैथ चिकित्सा में लंबी लगती कटारे विभिन्न रोगों के लिए प्रयुक्त होने वाली औषधियां के साइड इफेक्ट को खत्म करने के लिए जरूरी है कि वापस आयुर्वेद की ओर लौट जाए आयुष अस्पताल में आयुर्वेद यूनानी ,होम्योपैथी चिकित्सा के माध्यम से विभिन्न लोगों का इलाज एक ही स्थान पर और कुशल डॉक्टर के नेतृत्व में किया जाता है। सरकारी अस्पताल होने के कारण आपका इलाज ₹1 में जरूर हो जाता है परंतु आज भी बहुत सी समस्याएं इस अस्पताल में हैं जो हमें और आपको मिलकर दूर करनी होगी संसाधनों की कमी है और बढ़ती भीड़ के कारण चिकित्सा में और सुविधाओं की आवश्यकता है। अनेकों कमियों के बावजूद मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ संदीप कुमार शुक्ला के कुशल निर्देशन में आयुर्वेद, होम्योपैथी एवं यूनानी के चिकित्सक डॉ वरुण सिंह, डॉ सुशील त्रिपाठी,डॉ आशुतोष शुक्ला, डॉ अफसाना बेगम, डॉ प्रज्ञा साहू, डॉ ज्ञान प्रकाश मौर्य तथा स्टॉफ के अथक प्रयास द्वारा द्वारा इस चिकित्सालय में पंचकर्म जैसी चिकित्सा विधियों से रोगियों को कष्ट मुक्त किया जा रहा है जो कि सराहनीय है l
**आयुष अस्पताल में जन सुविधा बढ़े इसके लिए छोटे-छोटे प्रयासों के अंतर्गत आज 50 शैय्या एकीकृत आयुष चिकित्सालय कल्ली पश्चिम लखनऊ में रिटायर्ड शिक्षिका समाजसेवी रमा शर्मा ने मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ.संदीप कुमार शुक्ल की प्रेरणा से अपने सुपुत्र हिमांशु भारद्वाज के जन्मदिन के अवसर पर अस्पताल को एक वॉटर डिस्टेंसर चिकित्सा हेतु आए रोगियों को गर्म पानी मिल सके ,दो व्हिच एयर, दो वाकर अस्पताल को चिकित्सा सुविधा हेतु प्रदान किए* ।
* *लखनऊ जिले के एकमात्र सरकारी 50 शैय्या एकीकृत आयुष चिकित्सालय* में आयुष चिकित्सा से विभिन्न रोगों का इलाज करायें तथा कुछ सुविधाओं में अपना सहयोग प्रदान करें। आज का समय आ गया है कि हम अपने सनातन और प्राचीन चिकित्सा पद्धति से जुड़े ताकि यह ज्ञान घर-घर तक पहुंच सके।
@रीना त्रिपाठी

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