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दया और सेवा को नया आयाम प्रदान करने वाली फ्लोरेंस नाइटेंगल कि आज 203 वी जयंती हम मना रहे हैं।
नर्स (Nurse)के फुल फॉर्म को हिंदी में नोबिलिटी, यूटिलिटी, रिस्पांसिबिलिटी, सिम्पथी, एफिशिएंसी कहा जाता है और इसका मतलब श्रेष्ठता, उपयोगिता, ज़िम्मेदारी, सहानुभूति, कार्य कुशलता होता है। इन सभी गुणों के बेशकीमती मोतियों को प्रयोग कर जो व्यक्तित्व बनता है वही नर्स/सिस्टर कहलाती हैं।आज आवश्यक है कि हम सभी हमारे भारतीय समाज में सेवा के परम भाव से काम करने वाली नर्सों को नमन करें। और इसी भाव से एक छोटी सी कहानी आपके साथ साझा करती हूं। निश्चित रूप से यह आपके अगल-बगल भी कभी ना कभी घटित जरूर हुआ होगा।
यह कहानी है लाल अस्पताल लखनऊ में काम करने वाली भावुक कोमल मन की स्वामिनी नर्स रूपा की… एक छोटी लड़की, शिक्षा का स्तर बहुत उच्च ना था हाईस्कूल स्तर पर उसका विवाह हो गया । वह अपने पति के साथ खुशी-खुशी रहने लगी कुछ दिनों के बाद रूपा को पता चला कि उसका पति शराब पीता है और धीरे-धीरे शराब की लत ने उसका छोटा सा व्यापार भी खत्म कर दिया। अब घर में आए दिन मारपीट लड़ाई झगड़ा होने लगे और इसी जद्दोजहद में शादी के चार साल बीत गए इन सालों में रूपा के पास एक बेटी और एक बेटा भी था। जैसा कि भारतीय समाज में बेटियों को शादी के वक्त ही सिखा दिया जाता है कि कुछ भी हो पति के साथ ही रहना है मायके वापस नहीं आना तो इसी जद्दोजहद में रूपा की जिंदगी भी चल रही थी परंतु एक दिन मारपीट की इंतेहा इतनी ज्यादा हो गई कि उसके पति ने उसकी बेटी को भी मारना शुरू कर दिया यह सब रूपा के सब्र के बांध को तोड़ने के लिए काफी था। रूपा ने अपने पति के घर को छोड़कर कहीं और रहने का फैसला किया लेकिन उसके पास ना तो काम था और ना ही शिक्षा कि वह एक सम्मानजनक नौकरी कर सके। लेकिन रूपा ने हार नहीं मानी अक्सर मरहम पट्टी कराने के लिए जाते हुए उसने अपने बगल के एक हॉस्पिटल में काम मांगने की ठानी ।उसकी पढ़ाई के हिसाब से उसे साफ सफाई का काम दिया गया और वही हॉस्पिटल के ऊपर एक खाली कमरे में उसने रहने काआश्रय । लाल अस्पताल के प्रबंधक डॉ मोतीलाल श्रीवास्तव के प्रेरणा से काम सीखने और करने के लिए अपार संभावनाएं मिली और यहीं आलमबाग के लाल अस्पताल में शुरू हुआ रूपा के ऊपर होने वाले अत्याचार और अन्याय के अध्याय के अंत का समय।
रूपा ने एक वर्ष तक खुद को संभाला साफ-सफाई मरीजों की देखभाल करते हुए उसने यह देखा कि उसके अंदर सेवा भाव बहुत ही ज्यादा है और उसने इंजेक्शन लगाने इमरजेंसी में दवाइयों का ज्ञान शीघ्र प्राप्त कर लिया । इसी क्रम में लाल अस्पताल के प्रबंधक डॉ मोती लाल श्रीवास्तव ने परखा और रूपा को पढ़ाने का फैसला किया । रूपा ने इंटर की परीक्षा पास की और कुछ ही वर्षों में नर्सिंग स्कूल में एडमिशन लेकर नर्सिंग में वरदहस्त हुईं। कई मरीजों के लिए विशेषकर जच्चा बच्चा के जीवन को बचाने मेंअतिआवश्यक सेवा में रूपा का विशेष योगदान वहीं रहने के कारण सभी को मिलता रहता है। पेट में हाथ रखकर रूपा बच्चे की दशा दिशा और डिलीवरी का प्रकार बता देती ।
निश्चित रूप से रूपा की किस्मत अच्छी रही होगी कि पति की ठोकरें उलाहना मारपीट और बेज्जती के चक्रव्यू से निकलकर उसे एक सम्मानजनक सहारा मिला और उसने भी उस नमक के कर्ज को बखूबी निभाया । सिस्टर रूपा आज भी लाल अस्पताल में सीनियर नर्स के तौर पर काम करती है निश्चित रूप से शायद उसके जीवन के बीस साल से ज्यादा उस अस्पताल में बीत चुके हैं। कई बार उसने असहनीय पीड़ा और दुस्वारियो से गुजर रही महिलाओं की नॉर्मल डिलीवरी बहुत ही सहजता से करा दी ,फिर पेशेंट की साफ-सफाई का मामला हो उसकी सेवा का मामला हो या परिवार की तरह केयर करने का मामला रूपा से बेहतर शायद कोई इंसान नहीं हो सकता।
दो छोटे बच्चों के साथ अपने जीवन को नया मोड़ और समाज के प्रति अपने समर्पण को गरिमा पूर्ण रूप से निर्वाह करने वाली रूपा आज गौरवान्वित है। रूपा ने बताया कि उसे नशा करने वाले लोगों से बहुत ही नफरत है वह नहीं चाहती कि उसके बच्चों की शादी किसी भी प्रकार के नशा करने वाले संपन्न व्यक्ति से भी की जाए उसने बताया कि कई बार अस्पताल में ऐसे मरीज आते हैं जो गुटखा खाकर मुंह के कैंसर से जूझ रहे होते हैं। नशे से नफरत होने के बावजूद भी बहते हुए खून और सड़े हुए पर्स को अपने सेवा भाव और कर्तव्य के तहत आकर साफ करना पड़ता है उनकी देखभाल करनी पड़ती है और उन्हें समझाना पड़ता है कि नशे से दूर रहें और अपने परिवार वालों को अपने बच्चों को भी नशे से दूर रखें। रूपा जैसी लाखों महिलाएं कभी भी अपनी बेटी की शादी ऐसे लड़के से नही करना चाहतीं जो किसी भी प्रकार का नशा करता है। फिर चाहे वह लड़का मजदूरी करें या रिक्शा चलाए अगर नशे से दूर है तो निश्चित रूप से अपनी किस्मत और अपने परिवार का पालन पोषण सम्मानजनक और गौरव पूर्ण तरीके से कर लेगा।
लाल अस्पताल के संस्थापक श्रीमती रचना श्रीवास्तव का कहना है कि समाज में सभी को बेटियों को शिक्षित करना चाहिए तथा यदि कोई महिला या बेटी किसी ऐसे परिवार में आ जाती है जहां लोग नशा करके उसे प्रताड़ित करते हैं तो निश्चित रूप से यह पढ़ाई ही उसका हुनर बनकर उसके भविष्य के लिए काम आता ह रूपा की लगन और मेहनत करके जीवन जीने की इच्छा ने मुझे भी प्रभावित किया, जिसे लाल अस्पताल ने दिशा प्रदान की।
रूपा की कही हुई यह बातें शायद बहुत छोटी होंगी पर एक मार्मिक संदेश के साथ हैं सबको रूपा जैसा साहस हौसला और अभिभावक तुल्य सहारा नहीं मिलता इसलिए आवश्यक है कि समाज से नशा दूर हो ताकि मासूम बेटियों की जिंदगी बर्बाद ना हो। निश्चित रूप से जितनी आसानी से मैंने कह दिया इतना आसान उस महिला का अपने दो बच्चों के साथ का सफर आसान नहीं रहा होगा संघर्ष शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।
आज नर्सिंग दिवस के अवसर पर सभी देशवासियों से अपील है कि अपने जीवन को सेवा भाव के लिए समर्पित करने वाली नर्सों को नशे के कारण होने वाली बीमारियों की सेवा में ना लगाएं खुद भी स्वस्थ रहें और समाज को स्वस्थ रखें।